स्मृतियाँ

Featured
Advertisement

लेपाक्षी

#world_herirage_day

#विश्व_धरोहर_दिवस

#लेपाक्षी_मन्दिर #विरासत
#भारत_दर्शन #आंध्र_प्रदेश
#संसकृति #इतिहास #शिव_मन्दिर #वीरभद्र
#lepakshitemple
#lepakshisaree

भारत मन्दिरों का देश है। हर-एक मंदिर की अपनी एक कहानी है, मान्यताएंँ हैं, और विशेषताएंँ हैं। उत्तर से दक्षिण तक पूरब से पश्चिम तक भारत के चप्पे-चप्पे में शताब्दियों पुरानी अनगिनत मन्दिरें अद्भुत, अनोखी और अविस्मरणीय किस्से-कहानियों को कहते आज भी अडिग अपनी जगह बने हुए हैं।

ऐसे ही अनगिनत कलात्मक मंदिरों की श्रृंखला में
#सोलहवीं_शताब्दी में बना एक अद्भुत मंदिर लेपाक्षी मन्दिर भी है। यह आंध्र प्रदेश के #श्री_सत्य_साई_ जिले के एक छोटे से गाँव में है। यह गाँव #लेपाक्षी गाँव के नाम से ही जाना जाता है। #हिन्दुपुर से लगभग १५ और #बेंगलुरु से १२० किलोमीटर दूरी पर स्थित है यह लेपाक्षी मन्दिर है।

वैसे तो पूरा मन्दिर ही अपने आप में अनूठा है। मन्दिर के बेजोड़ संरचना और अद्भुत शिल्पकला को मंदिर के हर-एक पत्थर में देखा और महसूस किया जा सकता है। मन्दिर आश्चर्यचकित, अद्भुत नक्काशियों, मूर्तियों और भित्ति-चित्रों से पटा पड़ा है। इन स्तंभों पर भगवान शिव के 14 अवतारों — नटराज, हरिहर अर्धनारीश्वर, गौरीप्रसाद, कल्याणसुंदर इत्यादि के भित्तिचित्र उनके विभिन्न रूपों का चित्रण किया गया है।

साथ ही यहाँ रहस्यमयी #झूलता_खम्भा
(#Hanging_pillars) इस मन्दिर का विशेष आकर्षण बिन्दु है।
इसके अलावा यहाँ देखने के लिए विशालकाय शिवलिंग व नंदी की विशाल मूर्ति हैं जो एक ही चट्टान को काटकर बनाई गयी हैं। श्रीराम जी के पदचिन्ह, बड़े पत्थरों से बना विशालकाय गणेश और हनुमान जी की मूर्ति की भी अपनी कहानी है।

#लेपाक्षी_मन्दिर_का_रहस्य
अतिश्योक्ति नहीं होगी अगर इसे अजीब और रहस्यमयी मंदिर कहां जाए तो। रहस्यमयी बात यह है कि इसका एक खंभा जमीन से कुछ सेंटीमीटर ऊपर हवा में लटका हुआ है और इसका रहस्य आज तक कोई नहीं सुलझा पाया है।
इसलिए इसे “हैंगिंग पिलर (झूलता हुआ स्तंभ) टेंपल” के नाम से भी जाना जाता है। पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र बिन्दु है यह रहस्यमयी तरीके से हवा में लटका हुआ खम्भा।

ब्रिटिश काल में भी ब्रिटिश इंजीनियरों ने इस रहस्य को सुलझाने की कोशिश में लटकते हुए खम्भे पर हथौड़े से वार किया था। बाकी खम्भों में दरारें पड़ीं लेकिन यह झूलता खम्भा जस-का-तस रहा। आखिरकार यह बात सामने आई कि मंदिर का सारा वजन इस एक खम्भे पर ही है। ब्रिटिश लटकते हुए खम्भे के रहस्यमयी संरचना के सामने घुटने टेक दिए और हारकर वापस चले गए।

#अर्ध_मण्डप_या_अंतराल_मण्डप
मण्डप का निर्माण पूरा नहीं हो पाने के कारण इसे अर्ध या अंतराल मण्डप कहा जाता है।
मान्यता है कि इसी जगह भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था और देवताओं ने यहाँ नृत्य किया था। उन्हीं की याद में विजयनगर राजाओं ने एक नृत्य मंड़प का निर्माण किया। इसमें नक्काशीदार कुल सत्तर (70) खम्भे हैं, जिसमें 69 खम्भे जमीन से जुड़े हुए हैं और एक खंभा छत से तो जुड़ा हुआ है लेकिन जमीन से जुड़ाव नहीं है। इसके पीछे का रहस्य आज तक कोई नहीं जान पाया है।
इस खम्बे को लेकर किए जा रहे दावे में कितनी सच्चाई है यह जानने के लिए अधिकतर पर्यटक इस खम्बे के नीचे से बहुत सारी वस्तुएँ जैसे कपड़े, कागज़ आदि को खम्भे के नीचे से डालकर इधर से उधर खींचते और निकालते हैं।
बदलते समय में लोगों में मान्यता पनपी कि कोई भी खंभे के इस पार से उस पार तक कोई कपड़ा ले जाए, तो उनकी इच्छाएँ पूरी हो जाती है।

#लेपाक्षी_का_इतिहास
कुछ किंवदंतियों के अनुसार इसका संबंध #रामायण में श्रीराम और जटायु से है। मान्यता है कि जब #रावण और #जटायु के युद्ध में जटायु हार गए और घायल होकर राम राम चिल्लाते हुए इसी जगह पर गिर पड़े थे। कुछ समय पश्चात श्रीराम जटायु को खोजते हुए आते हैं तब उनकी दृष्टि निश्चेष्ट जटायु पर पड़ती है। भगवान राम जटायु का सिर अपनी गोद में रखकर ले-पाक्षी, #ले-पाक्षी अर्थात उठो पक्षी (तेलुगू में ले का अर्थ उठो होता है) बार-बार बोलते रहे
अंततः जटायु अंतिम सांस लेते हुए भगवान श्रीराम के गोद में अपने प्राण त्याग दिए।
भगवान राम ने उसी स्थान पर जटायु का अंतिम संस्कार अपने हाथों से किया तब से उस स्थान का नाम लेपाक्षी पड़ गया और वहाँ निर्मित मन्दिर का नाम लेपाक्षी मन्दिर।
यहाँ निर्मित तीन विशालकाय मन्दिर भगवान शिव, भगवान विष्‍णु और भगवान वीरभद्र को समर्पित हैं।

इस मंदिर के निर्माण के पीछे भी कुछेक मान्यताएं हैं —
मान्यता है कि यह सतयुग के समयकाल का है। इसलिए लेपाक्षी मंदिर का इतिहास अति-प्राचीन है। मान्यता है कि महर्षि अगस्त्य ने शिवजी के वीरभद्र रूप को समर्पित कर इस मंदिर का निर्माण करवाया था। शिवलिंग के पीछे सात मुहं वाला विशाल नाग भी हैं। यह भारत के सबसे बड़े शिवलिंगों में से एक है जिसे एक ही चट्टान को काटकर बनाया गया है। इस मंदिर को वीरभद्र मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर में भगवान शिव वीरभद्र रूप में स्थित है। यह मन्दिर कुर्मासेलम की पहाडियों पर कछुए की आकार में बना बना हुआ है।

कुछ इतिहासकारों का कहना है कि इस मंदिर का निर्माण 16वीं सदी में विरुपन्ना और विरन्ना नाम के दो भाइयों ने कराया था, जो विजयनगर के राजा के यहांँ काम करते थे।
मान्यताएं जो भी हो लेकिन यहाँ की शिल्पकला और अद्भुत नक्काशी पूरे विश्व में प्रसिद्ध है।

#विश्वप्रसिद्ध_विशालकाय_नंदी
इस मंदिर के प्रवेश द्वार पर शिवजी की सवारी नंदी की एक विशाल मूर्ति है। यह विश्व में नंदी की सबसे विशाल मूर्ति है। लंबाई 27 फीट व ऊंचाई 15 फीट के आसपास है।

#विश्वप्रसिद्ध_विशालकाय_नागलिंग
यह विश्व का सबसे बड़ा नागलिंग है। दुनिया भर से लोग इस अद्भुत व विशाल नागलिंग को देखने आते हैं। यह शिवलिंग एक पहाड़ पर स्थित है जिसे एक ही चट्टान को काटकर बनाया गया है। इसे स्वयंभू शिवलिंग के नाम से भी जाना जाता है। शिवलिंग के पीछे सात मुहं वाला विशाल शेषनाग भी विराजमान है जो इसे और ज्यादा अद्भुत और विशाल रूप देता है।

#लेपाक्षी_मंदिर_पर_साड़ियों_के_डिजाईन
(#लेपाक्षी_साडियाँ)
लेपाक्षी मंदिर की एक और विशेषता यह हैं कि यहाँ की दीवारों के भित्तिचित्रों पर शिव के विभिन्न रुपों के अलावा उस समयकाल के कई प्रकार के साड़ियों के डिजाईन भी बने हुए हैं। जिन्हें भारत ही नहीं बल्कि् देश-विदेश के साड़ियों के जानकर देखने और इनका विश्लेषण करने के उद्देश्य से यहाँ आते हैं।
आज लेपाक्षी साडियाँ और डिजाइन पूरे विश्व में प्रसिद्ध है।

हनुमान जी और भगवान गणेश की विशालकाय मूर्ति जो एक ही पत्थर को तराश कर बनाई गई है भी यहाँ आने वाले सैलानियों का ध्‍यान आकर्षित करती है।

© अपर्णा विश्वनाथ

चित्र और चलचित्र साभार –
ओ वेणु गोपाल और मरुवाडा नारायण

https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=pfbid0ydJEQ6zu3mTh9M1Nex1qiU7AyBnmd8q7RSZJxvbJUYhrTGNs7PFCAK7qXpdMtFXel&id=100008109856379&sfnsn=wiwspmo&mibextid=RUbZ1f

क्या अब भी आपके यहांँ आती है गौरेया?
कि अब स्मृति बन चुकी हैं…🐤🐥🐦🪶🐦🐦‍⬛🕊️🐦🪺🪹🪺

क्या गौरेया अपना अस्तित्व खोते जा रहे हैं ? अपने आसपास नज़र दौड़ाइए। घरेलू गौरैया कहलाने वाले यह गौरेया क्या अब हमारे घरों आँगन या रौशनदान में दिखाई देते हैं?

इन दो दशकों में क्या कुछ बदलाव आया । हमारे आसपास से बहुत कुछ गायब होते चले गये और हमें पता भी नहीं चला।

जो गौरेया कभी हमारे परिवार और जैव विविधता का महत्वपूर्ण हिस्सा हुआ करते थे अब धीरे-धीरे किस्से-कहानी बन गये हैं। कौन है जिम्मेदार?

सोचने वाली बात है। क्यों महत्वपूर्ण है गौरेयों का अस्तित्व हम मनुष्यों के लिए भी ….

#राष्ट्रीयमासिकपत्रिका #प्रकृतिदर्शन का #अप्रैलमाह के इस अंक इन्हीं महत्वपूर्ण सवालों के जवाबों को ढूंढने का प्रयास है।

https://youtu.be/LzzzZDzGlgg
यह गाना आप सभी जरूर सुनिए और अपने घर में छोटे बच्चों को जरूर सुनाईए। बहुत ही मधुर गाना है 🐦‍⬛🐦🌳🪺🎧🎶🎼

उगादी २०२३

आप सभी को #शोभाकृत_नाम_संवत्सर /#उगादी_२२मार्च_२०२३ (सृष्टि का जन्मदिन) नववर्ष की मंगलकामनाएंँ 🌺❤️

#उगादी आंध्र प्रदेश की पारंपरिक त्यौहारों में से एक है। उगादी/ संवत्सरादि/ युगादि (युग+आदि) यानी एक नए युग की शुरुआत। यह पर्व चंद्र पंचाग के चैत्र मास के पहले दिन (पाड्यमी) को मनाया जाता है।
उगादी का दक्षिण भारत में विशेष महत्व अनेक कारणों से है। इस समय वसंत ऋतु अपने पूरे चरम पर होता है। इसलिए मौसम काफी सुहावना तो रहता ही है साथ ही कृषकों में नयी फसल को लेकर काफी खुशी और उत्साह का माहौल रहता है।

इसके इतर #उगादी_के_इतिहास (History of Ugadi Festival) पर नजर डालें तो पौराणिक कथाओं के अनुसार — इसी दिन ब्रम्हा जी ने सृष्टि की रचना शुरु की थी और इसी दिन भगवान विष्णु ने मतस्य अवतार धारण किया था।
जिस तरह हम अपना जन्मदिन मनाते हैं ठीक उसी तरह उगादी सृष्टि के जन्म दिवस मनाने का सांप्रदाय है। इसलिए कई जगहों पर इस दिन ब्रह्म और विष्णु जी को पूजने की परंपरा है।

इतिहासकारों के अनुसार इस पर्व की शुरुआत सम्राट शालिवाहन (जिन्हें गौतमीपुत्र शतकर्णी के नाम से भी जाना जाता है), उनके शासनकाल में हुआ था।

पर्व का एक पक्ष यह भी है कि पुराने समय में किसानों के लिए यह एक खास अवसर होता था क्योंकि इस समय उन्हें नयी फसल की आमद जो होती थी। जिन्हें बेचकर वह अपने जरुरत के सामान खरीदा सकते थे। यही कारण है कि उगादी के इस पर्व को कृषकों द्वारा आज भी इतना सम्मान दिया जाता है।
आंध्र प्रदेश और कर्नाटका के अलावा देश के कई हिस्सों में अलग-अलग नामों से यह पर्व मनाया जाता है।

ऐसी मान्यता कि इस दिन कोई नया काम शुरु करने पर सफलता अवश्य मिलती है, आज भी उगादी के दिन दक्षिण भारतीय राज्यों में लोग नए काम की शुरुआत, दुकानों का उद्घाटन, भवन निर्माण का आरंभ आदि जैसे शुभ कार्यों की शुरुआत करते उगादी के दिन करते हैं।

#प्रकृति_और_परंपरा
हमारे भारतीय त्यौहार, और प्रकृति एक दूसरे के पर्याय हैं। हर त्यौहार में एक विशेष खानपान का महत्व होता है। गौर करने पर हम पाएंगे कि यह विशेष खानपान के नियम हमारे शरीर को ऋतुओं में हुए परिवर्तन से लड़ने के लिए तैयार करता है और हमारे शरीर के प्रतिरोधी क्षमता को भी बढ़ाता है। प्रकृति के साथ अनुसंधान करने, प्रकृति के साथ तालमेल बिठाने और प्रकृति के करीब जाने का एक बहाना है हमारे भारतीय पर्व-त्यौहार।

#उगादी केदिन
उगादी के दिन घर के सभी सदस्य जल्दी उठकर, सिर से नहाकर, नूतन या स्वच्छ वस्त्र धारण करते हैं। विधिपूर्वक घर में पूजापाठ करके भगवान को उगादी पच्चडी का नैवेद्य समर्पित किया जाता है और भगवान के आशीर्वाद के रूप में घर के सभी सदस्य यह उगादी पच्चडी ग्रहण करते हैं। अपने संस्कारों का निर्वहन करते हुए भगवान तथा बड़ों से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। उसके बाद ही अन्य पकवान और खानपान खाने की प्रथा है। तत्पश्चात देवालय जाकर भगवान के दर्शन करके वहाँ या अन्यत्र जहाँ पंचांग श्रवण हो रहा है, पंचांग श्रवण करने की प्रथा है। यह संस्कार और प्रथा आज भी आंध्रप्रदेश की परंपरा और संस्कृति में जीवित है।

#उगादी_पच्चडी (चटनी) और #पंचांग_श्रवणं का विशेष महत्व
उगादी के दिन प्रसाद के रूप में एक प्रकार की पच्चडी (चटनी) कुल छ: प्रकार की खाद्य सामग्रियों (कच्चा आम, नीम का फूल, इमली, गुड़, हरी मिर्च और सेंधा लवण ) के मिश्रण से तैयार की जाती है। यह पदार्थ स्वास्थ्य और स्वाद दोनों ही दृष्टि से अति उत्तम है। इसके बिना उगादी अधूरी है।
यह छ: पदार्थ आयुर्वेदिक और औषधीय गुणों से भरपूर होने के साथ ही जीवन के षड रसों को भी इंगित करता है। जिस तरह से यह छ: रस हमारे भारतीय भोजन का महत्वपूर्ण हिस्सा है, उसी तरह हमारा जीवन भी हर्ष, विषाद, क्रोध, कड़वाहट, भय तथा आश्चर्य इन छः संवेदनाओं का मिश्रण है और हमारे जीवन का महत्वपूर्ण अंग है।
इन षड रसों में हमारी संवेदनाएं किस तरह शामिल है —
१ गुड़ मीठा होता है और मीठा खुशियों का प्रतीक है।
२ कच्चे आम का तुर्श और अम्लीय स्वाद जीवन के आश्चर्य और जीवन की नई चुनौतियों का प्रतीक है।
३ नीम फूल का कड़वा स्वाद जीवन के विषाद और कठिनाइयों का प्रतीक है।
४ इमली का खट्टा स्वाद जीवन के चुनौतियों का प्रतीक है।
५ हरी मिर्च का उष्ण और तीखापन क्रोध का प्रतीक है।
६ लवण का नमकीन स्वाद जीवन के अज्ञात या अपरिचित पहलू का प्रतीक है।

इन छः सामग्रियों के अलावा पच्चडी को और स्वादिष्ट बनाने के लिए उपर से नारियल, केला, मधु का प्रयोग भी किया जाता है। कुछ लोग हरी मिर्च की जगह काली मिर्च (गोलमिर्च) का इस्तेमाल करते हैं।
लेकिन उपरोक्त छ: सामग्रियां मुख्य रूप से उगादी पच्चडी के लिए होना अति आवश्यक है।

यह उगादी पच्चडी हमें बताता है कि जिस तरह भोजन को पौष्टिक और स्वादिष्ट बनाने के लिए हम षड रस का प्रयोग करते हैं ठीक उसी प्रकार भावनात्मक स्वास्थ्य जीवन के लिए इन छ: संवेदनाओं का भी स्वागत किया जाना चाहिए और यह भी कि किसी तरह के असफलताओं पर उदास नही होना चाहिए बल्कि् सकारात्मकता के साथ नयी शुरुआत करनी चाहिए।

#पंचांग_श्रवणं
पंचांग के पाँच अंग है तिथि, वार, नक्षत्र, योगं और करणं।
इन पंच अंग का आपके जीवन में इस नववर्ष में क्या प्रभाव रहेगा। उगादी के दिन पंचांग सुनने की प्रथा उगादी पर्व का एक अंग है।

-अपर्णा विश्वनाथ

प्रकृति दर्शन

ज़ार ज़ार होते पहाड़ों के बीच ज़ार ज़ार रोते हुए लोग, क्या यह चिंता आपकी और हमारी नहीं है। दोष नीति की विफलताओं की या नीयती की, जिसकी भी हो लेकिन पर्वत श्रृंखलाएँ अब दरारों की श्रृंखलाओं में तब्दील हो रही है। यह संकट किस रूप में विकसित होकर थमेगा इसका अंदाजा भी नहीं है।

सच हम बेफिकरे हैं… पर्यावरण को लेकर न गहन हैं और न गंभीर…। चिंता बढ़ रही हैं… क्योंकि जिंदगी संकट की ओर तेजी से अग्रसर है…। महत्वपूर्ण अंक है… पढ़िएगा…।

https://play.google.com/store/apps/details?id=com.vis.prakiritidarshan

#प्राचीनशहर #हम्पी #विजयनगर #कर्नाटक #किष्किंधा #अतुल्यभारत #विरासत #धरोहर
#विठ्ठलमन्दिर #विरूपाक्षमन्दिर #हम्पीरथ #चंपावृक्ष
#देव_कनागिले #राजाकृष्णदेवराय #युनेस्कोविश्वधरोहर
#incredibleindia #heritage #hampikarnataka #hampichariot #virupakshatemple #vitthalatemple #krishnadevrai #unescoworldheritage

अतिशयोक्ति नहीं होगी अगर भारत को ऐतिहासिक धरोहरों का कुंभ कहा जाए।
अतुल्य भारत के गौरवशाली इतिहास की आश्चर्यचकित कर देने वाली गाथाएं भारत के कण कण में रची बसी है। हरी भरी प्रकृति,इसकी विस्तृत बाहें, कलकल बहती नदियाँ और झरझर बहते झरने मानो भारत के सोने की चिड़ियांँ होने की दास्तांँ सुनाते हैं।
ऐसी ही एक समृद्धशाली इतिहास विशाल और विस्तृत हम्पी की भी है।
इसके गौरवशाली और समृद्धशाली इतिहास की गाथा सदियों से अडिग यहाँ की पाँच-दस मंजिला जितनी ऊंँची-ऊंँची गोल चट्टानों के टीलें सुनाते हैं कि कभी तुंगभद्रा नदी के तट पर बसी हम्पी मध्यकालीन हिन्दू राज्य विजयनगर साम्राज्य की राजधानी हुआ करती थी।
वर्तमान में यह आंध्र प्रदेश राज्य की सीमा से समीप मध्य कर्नाटक के पूर्वी हिस्से में बसा है।
हम्पी तुंगभद्रा नदी के तट पर स्थित पत्थरों और असाधारण प्रकृति से से घिरा एक पवित्र शहर है। यहाँ लगभग पाँच सौ से अधिक मंदिरों की ख़ूबसूरत श्रृंखलाएँ है। इसलिए इसे मंदिरों का शहर भी कहा जाता है।
अपने समृद्ध धरोहरों एवं असंख्य आकर्षणों के चलते यह देश दुनिया के प्रसिद्ध पर्यटक स्थलों में से एक है।

कभी किष्किन्धा कहलाने वाली कर्नाटका के बारे में जानते हैं और अपनी जानकारी में थोड़ा सा इज़ाफ़ा करते हैं।
कहते हैं ना हमारे भारत का समृद्ध इतिहास हमारे शेष बचे मंदिरों में दिखाई देते हैं।
हम्पी विजयनगर हिन्दुओं के सबसे विशाल साम्राज्यों में से एक था। 1336 ई. में इस साम्राज्य की स्थापना हरिहर और बुक्का नामक दो भाईयों ने की थी। 1509 से 1529 के बीच कृष्णदेव राय ने यहाँ शासन किया। विजयनगर साम्राज्य के अर्न्‍तगत कर्नाटक, महाराष्ट्र और आन्ध्र प्रदेश के राज्य आते थे। कृष्णदेव राय एक महान राजा थे। इनके बल बुद्धि और शासनकाल के अनेक प्रचलित किस्से हैं।

कृष्णदेव राय के दरबार में सलाहकार के रूप में पंडित चतुर तेनालीरामा को कौन नहीं जानता। नंदन और चंदामामा जैसे बाल पत्रिका बच्चों में खासा प्रचलित हुआ करती थी। क्योंकि उसमें नियमित रूप से तेनालीराम के मशहूर और पेट को गुदगुदाने वाले किस्से छपते थे। इन किस्से कहानियां के जरिए राजा कृष्णदेव राय के बारे में भी बच्चे जान लिया करते थे।
राज कृष्णदेव राय ने अपने शासनकाल में राज्य का काफी विस्तार किया और अधिकतर स्मारकों का निर्माण भी करवाया।
वैसे हम्पी की सभी मंदिर अद्वितीय है लेकिन हम्पी की

विठ्ठल मन्दिर- निःसंदेह आश्चर्यचकित कर देनी वाली स्मारकों में से एक है। विठ्ठल मंदिर द्रविड़ वास्तुकला का अद्भुत नमूना है।
इसमें मुख्य आकर्षण इसकी 56 खम्भों वाला रंगमंडप है। इन्हें संगीतमय खंभे के नाम से जाना जाता है। क्योंकि इन खंभों को थपथपाने पर इनमें से संगीत की लहरियां निकलती है।

हम्पी रथ (Hampi ratha) – दूसरे हॉल के पूर्वी हिस्से में अद्भुत और प्रसिद्ध शिला-रथ जिसे हम्पी रथ भी कहते हैं है। पत्थर का बना रथनुमा मन्दिर भगवान विष्णु के वाहन गरुड़ को समर्पित है। यह द्रविड़ वास्तुकला का अद्भुत नमूना है। ग्रेनाइट पत्थर को तराशकर इसमें मंदिर बनाया गया। यह एक रथ के आकार में है। कहा जाता है कि इसके पहिये घूमते भी थे और वास्तव में रथ पत्थर के पहियों से चलता था। आश्चर्यचकित करने वाला तथ्य यह भी कि शिला रथ का हर हिस्सा खुल जाता था।
लेकिन अब रथ को बचाने के लिए इसपर सीमेंट का लेप लगा दिया गया है।अब यह अपनी जगह स्थिर है। ना जाने हम्पी ऐसे और कितने रहस्यमई, विस्मयकारी स्मारकों से पटा पड़ा है।
1986 में यूनेस्को ने इस प्राचीन शहर को विश्व विरासत स्थल घोषित कर संरक्षण में ले लिया है।

हम्पी वृक्ष – हेमकूट मन्दिर परिसर में इस वयोवृद्ध वृक्ष को विठ्ठल वृक्ष/ रथ वृक्ष कहा जाता है। इसका नाम तेलुगू में नूर वरहालू ,हिन्दी में गुलचीन/ क्षीर चंपा, कन्नड़ा में देव कनागिले तथा अंग्रेजी नाम प्लूमेरिया है। इस पेड़ की उम्र १५८ साल बताई जाती है। इस वैभवशाली पेड़ की विशालता देखते बनती है।

विरुपाक्ष मन्दिर – इसका निर्माण राजा कृष्णदेव राय ने 1509 में अपने राज्याभिषेक के समय बनवाया था और हम्पी शहर के भगवान विरुपाक्ष ( विष्णु) को समर्पित किया था। इसे पंपापटी मंदिर भी कहा जाता है।

-अपर्णा विश्वनाथ